चकिया /चंदौली। स्टेट मीडिया । तमाम बाधाओं और विपरीत परिस्थितियों के बाद भी यदि सोच सकारात्मक हो तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है। कठिन से कठिन काम को भी पूरा किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है एएनम बसंती मलिक ने।
बता दें कि कोरोना काल में जब अपने भी “अपनों” का साथ देने में हिचकिचा रहे थे, तब भी अपने जान की परवाह किये बगैर बसंती, लोगों की ऐसी परिस्थिति सेवा में जुटी रहीं। इतना ही नहीं 41 हजार से अधिक लोगों को कोविड का टीका लगाकर उन्हें सुरक्षित जीवन दिया। शायद यही कारण है कि लोग बसंती के सेवाभाव का सम्मान तो करते ही हैं उनके जज्बे को भी सलाम करते हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चकिया पर टीकाकरण में लगातार कर रही ड्यूटी एएनएम बसंती मल्लिक ने नौ माह में 41 हजार से अधिक लोगों को कोविड-19 का टीका लगा चुकी हैं। देश में 16 जनवरी 2021 से शुरू हुए कोविड-19 टीकाकरण अभियान को बसंती एक महायज्ञ की संज्ञा देती हैं।
वही बंसती मलिक ने कहा कि कोविड -19 के वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाना अनिवार्य , सावधानी की जीवन की सुरक्षा है, ‘देश वासियों की सुरक्षा के लिए यह “महायज्ञ” हो रहा है। इसमें 41 हजार लोगों का टीकाकरण कर मैने अपनी क्षमता के अनुसार एक छोटी से आहुति दी है। ‘मेरे जैसे ही प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के अन्य कर्मचारियों में एआरओ विनोद कुमार, बीपीएम अखिलेश कुमार, बीसीपीएम बृजेश कुमार, एबीएम विजय कुमार, सरवन कुमार, संजय कुमार, एएनएम सैलजा पांडेय, रत्नसुधा, हिरावती, सुस्मिता, नवीना टर्की, अरूणा, रूबी कुमारी, सुरेश पाल सहित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र चकिया के समस्त एएनएम की ओर से दी गयी छोटी-छोटी आहुतियों का नतीजा है कि देश ने सौ करोड़ के टीकाकरण का लक्ष्य इतने कम समय में पूरा कर लिया और अब यह महायज्ञ पूर्णाहुति की ओर है।’ कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान जब लोग अपनों को खो रहे थे । उस वक्त बाहर से आ रहे लोगों को समझा कर उनकी स्क्रीनिंग करना मुश्किल काम था, जिन लोगों को बुखार और जुकाम के साथ खांसी की समस्या थी, वह लोग भी जांच कराने को तैयार नहीं होते थे। इस कारण कोरोना संक्रमितों की सूची तैयार कर उन्हें आइसोलेट करना या दवा देने में समस्या उत्पन्न हो रही थी। तमाम समस्याओं को नजरअंदाज करते हुए कोरोना काल में वह गृह भ्रमण कर लोगों को जागरूक करती रहीं। उन्हें साफ-सफाई की जानकारी देती थीं । कोरोना की दूसरी लहर के समय एक दौर ऐसा भी आया जब टीकाकरण को लेकर कुछ लोग भ्रमित थे। तब उन्होंने अपने अन्य सहयोगियों के साथ इस भ्रम को तोड़ने के साथ ही लोगों को टीकाकरण के प्रति भी जागरूक किया। घर-घर जा कर 1000 लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग के साथ ही लोगों को कोरोना वायरस से सतर्क रहने और टीकाकरण कराने के लिए जागरूक किया।
मां थीं बीमार, बेटी की भी सताती थी चिंता। एक समय ऐसा भी आया जब अपनी मां को कोविड के चलते अस्पताल में दाखिल कराया । तब उनके पूरे परिवार को भी 14 दिन के लिए क्वारंटाइन किया गया। इन सब के बीच जब उन्होंने पुनः ड्यूटी शुरू की तब उन्हें अपने अन्य परिजनों के साथ ही अपनी नौ वर्ष की बेटी की चिंता बराबर सताती रहती थी, जिसे छोड़कर वह ड्यूटी पर जाया करती थीं । उन्हें हमेशा चिंता लगी रहती थी कि बेटी को कुछ न हो जाये। इसके बाद भी सुबह आठ बजे से शाम छह बजे तक उन्होंने ड्यूटी की। कभी-कभी देर शाम तो कभी रात भी हो जाया करती थी फिर भी वह लोगों की सेवा में जुटी रहीं। कई बार तो वह खुद भी बीमार हुईं पर दवा खाकर ड्यूटी करती रहीं। यह सोच कर कि चुनौतियों के इस दौर में उनकी जरूरत समाज को ज्यादा है। बसंती की इसी सकारात्मक सोच और चुनौतियों से जूझने की हिम्मत के चलते ही लोग उनके जज्बे को सलाम करते हैं।
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