चकिया । चंदौली । स्टेट मीडिया । चिकित्सक और मरीज के बीच एक विश्वास और भरोसे का रिश्ता होता है। रिश्ते के बल पर चिकित्सक हद तक अपने मरीज की बीमारी ठीक करने के लिए जूझता रहता है।
चिकित्सक कहना है कि उन्हें भगवान समझना गलत नहीं पर ये भी इंसान हैं। अपनी ओर से मरीज का बेहतर इलाज करने का पूरा प्रयास करते हैं। उनके प्रयास से अगर मरीज स्वस्थ होता है तो सबसे अधिक खुशी चिकित्सक को होती है। अगर डर और खौफ के माहौल के बीच इलाज करने की जिम्मेदारी दी गई तो वे उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभाने में दिक्कत आएगी। जरूरी है कि लोगों में डॉक्टरी पेशे को लेकर जागरूकता के साथ साथ डॉक्टर पर भरोसा करें । ताकि उनके मरीज की बेहतर इलाज की जा सके।
वृद्ध रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विवेक प्रताप सिंह का मानना है कि डॉक्टरी पेशे में इमोशनल होने की बजाय प्रैक्टिकल होना चाहिए। अगर हम इमोशन के बल पर मरीजों को ट्रीट करना शुरू करेंगे तो शायद बेहतर इलाज की कल्पना भी नहीं की जा सकेगी। मरीजों की सेवा करना, चिकित्सक का भगवान होना, चिकित्सक का सेवा भाव एक मान रखता है । जहां चिकित्सक अपनी छबि को बरकार रखते हुए मरीज इलाज करने में जी जान लगा देते हैं।
डॉ विवेक प्रताप सिंह का कहना है कि एक दिन मुझे एक ऐसा केस आया जो चुनौती भरा हुआ था । एक चुहे की जान बचानी थी ।
घटना उन दिनों की है जब हमारे अजिज,प्रिय अधिवक्ता हरि मोहनलाल श्रीवास्तव ने घर चुहा मारने की चुहेदानी डाल दिया था । जिसमें एक चुहा आकर फंस गया । उसे मारने गये तो उस पर दया आ गयी और चुहे जान बनाने के लिए विरेन्द्र प्रताप द्रविलोक हास्पिटल चकिया के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ वी पी सिंह के पास भेजवा दी, साथ चुनौती दिया की मरीजों का इलाज व जान बचा लेते हैं इस चुहे की जान बचा कर दिखाइए ।
चुनौती स्वीकार करते हुए डॉ विवेक प्रताप सिंह ने आपरेशन कर चुहे के गले में फंसा लोहे की तार को निकाल दिये और दवा पट्टी कर उसकी जान बचा ली । यह कारनामा हास्पिटल के समस्त स्टाफ देखते रहे । और वहीं मरीजों की कम संख्या नहीं रही। चुहे की इलाज की सूचना मिलते ही हास्पिटल में तामिरदार और स्टाफ की भीड़ लग गयी । आस पास के लोग भी आ पहुंचे । जो पास पास में एक चर्चा का विषय बना रहा । कि डॉक्टर साहब एक अधमरा चुहा क जान बचा लेहलै।
वहीं डॉ विवेक प्रताप सिंह के इस काबिलियत को सभी ने सराहा और बधाई दिये ।
वहीं पिता डॉ बीपी सिंह अपने की इस काबिलियत पर पीठ थपथपायी और शबासी दी ।
वही डॉ विवेक प्रताप सिंह ने बताते है जब चुहे का इलाज कर दिया तो वह स्वस्थ हुआ तो मेरे ऊगली को काटकर जख्मी कर दिया । लेकिन मैं घबराया नहीं है किसी की जान तो बची ।
उनका कहना है जान जान तो है चाहे किसी इंसान का हो, या किसी जीव जंतु का हो, या किसी पशु पक्षी का हो या फिर किसी जानवर का हो । अगर आप में काबिलियत है तो इलाज कर जान बचाई जा सकती है तभी तो चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया जाता है । इस पद की गरिमा को बरकार रखना चिकित्सक का कर्तव्य है ।
बता दें कि डॉ विवेक प्रताप सिंह के पास घटना ,दुर्घटना के ऐसे ऐसे मरीज आते हैं जिनके पास किसी अन्य हास्पिटल में जाने का समय नही रहता है ऐसे में फौरन मरीज के इलाज में लग जाते हैं । कुछ ऐसे भी मरीज आते निहायत गरीब हैं तो उनका इलाज निःशुल्क करते हैं । इनका मानना मरीज का इलाज कर जान बचानी हमारी पहला कर्तव्य है ।
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